स्वच्छता के माध्यम से गरिमा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना

आरएस अनेजा, नई दिल्ली।

हर साल 19 नवंबर को मनाया जाने वाला विश्व शौचालय दिवस, एक आधिकारिक कार्यक्रम है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत है और जिसका उद्देश्य स्वच्छता संकट को तत्काल रुप से दूर करने के लिए वैश्विक जागरूकता और कार्रवाई को बढ़ाना है। यह दिन वर्ष 2013 से मनाया जा रहा है, और यह प्रयास सतत् विकास लक्ष्य 6- 2030 तक सभी के लिए पानी और स्वच्छता सुनिश्चित करना, के हिस्से के रूप में सुरक्षित और सुलभ शौचालय सुविधाओं के महत्व पर जोर देने के लिए समर्पित है। इस वर्ष की थीम 'शौचालय- शांति के लिए एक स्थान' है, जो इस बात पर जोर देती है कि संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और व्यवस्थागत उपेक्षाओं के कारण अरबों लोगों को स्वच्छता के लिए बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है।

संदर्भ और महत्व

विश्व शौचालय दिवस की स्थापना, अपर्याप्त स्वच्छता के कारण विश्व भर में अरबों लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिए की गई थी। यह दिवस हैजा जैसी घातक बीमारियों के प्रसार को रोककर सार्वजनिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बनाए रखने में उचित शौचालय सुविधाओं की अहम भूमिका को दर्शाता है। वर्तमान में बेहतर स्वच्छता सेवाओं की सख्त जरूरत है,क्योंकि 3.5 बिलियन लोग अभी भी सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता के बगैर रह रहे हैं और दुनिया भर में 419 मिलियन खुले में शौच कर रहे हैं।

स्वच्छता सेवाएं एक सुरक्षात्मक बैरियर के तौर पर काम करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि मानव अपशिष्ट को पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने से रोका जा सके और समुदायों को खतरे से बचाया जा सके।  2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक असुरक्षित पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता के चलते हर दिन पांच साल से कम उम्र के लगभग 1000 बच्चों की मौत हो जाती है। बेहतर स्वच्छता की वजह से संभावित रूप से सालाना 1.4 मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकती है, जिससे साफ है कि इस क्षेत्र में त्वरित कार्रवाई की ज़रुरत है।

विश्व शौचालय दिवस 2024: बेहतर स्वच्छता व्यवस्था के लिए आह्वान

2024 का विश्व शौचालय दिवस अभियान एक स्पष्ट और जरूरी संदेश देता है: सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वच्छता और जल सेवाएं मज़बूत, प्रभावी और सभी के लिए सुलभ हों, तथा संघर्ष और जलवायु-प्रेरित व्यवधानों से सुरक्षित हों। इस मामले में आंकड़े चौंकाने वाले हैं- 2.2 बिलियन लोगों के पास अभी भी सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल की कमी है, और 2 बिलियन लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की कमी है, जिनमें 653 मिलियन लोग बिना किसी सुविधा के रह रहे हैं।स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम), स्वच्छता में सुधार और खुले में शौच को खत्म करने के भारत के प्रयासों की आधारशिला रहा है, जो 2014 में इसकी शुरूआत के बाद से एक परिवर्तनकारी यात्रा को दर्शाता है। एसबीएम-ग्रामीण के तहत, 11.73 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालयों के निर्माण के साथ पर्याप्त प्रगति हुई है, जिसके नतीजतन 5.57 लाख से अधिक ओडीएफ प्लस गांव बन गए हैं। इस पहल ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2014 की तुलना में 2019 तक डायरिया से होने वाली मौतों में 300,000 की कमी आई। मिशन का आर्थिक प्रभाव भी समान रूप से प्रभावशाली दिखा, जिसके जरिए ओडीएफ गांवों को स्वास्थ्य सेवा पर प्रति परिवार औसतन 50,000 रुपये की बचत हुई। इसके समकक्ष शहरी क्षेत्रों में, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी ने भी अपने लक्ष्यों को पूरा किया और 63.63 लाख से अधिक घरेलू शौचालयों और 6.36 लाख से अधिक सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण की सुविधा प्रदान की। इन प्रयासों के कारण 4,576 शहरों को ओडीएफ का स्थान मिला, जिनमें से कई ओडीएफ+ और ओडीएफ++ पदनामों के लिए आगे बढ़ रहे हैं। इस मिशन ने महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को भी अंदरूनी तौर पर प्रभावित किया है, ओडीएफ क्षेत्रों में 93% महिलाओं ने सुरक्षा भावना में बढ़ोत्तरी ज़ाहिर की है। सामूहिक रूप से, एसबीएम ने विश्व शौचालय दिवस और एसडीजी 6 के व्यापक लक्ष्यों के साथ एकरुपता दर्शाते हुए एक स्वच्छ, स्वस्थ और अधिक न्यायसंगत भारत की नींव रखी है।

Previous
Previous

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में हिंदी कार्यशाला आयोजित की गई

Next
Next

छह देशों के राजनयिकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपने परिचय-पत्र प्रस्तुत किए